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एजुकेशन का नया हब सिंगापुर!

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रमेश तिवारी
लखनऊ की मिडल क्लास फैमिली से जुड़े सौरभ शर्मा कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करने सिंगापुर गए। पढ़ाई के बाद वह अपनी कंपनी शुरू करना चाहते थे। नैशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के एंटरप्राइज सेंटर की मदद से उन्होंने एक मोबाइल एप कंपनी की शुरुआत की, लेकिन यह स्टार्ट अप जल्द ही फेल हो गया। दो साल के ब्रेक के बाद उन्हें फिर से ऐसी कंपनी बनाने का आइडिया आया, जिसके तहत सामाजिक सरोकारों के लिए डोनेशन लोन के रूप में दिया जाना था। उन्हें हैरत हुई कि एक बार फेल होने के बावजूद एंटरप्राइज सेंटर ने उनके आइडिया को नकारा नहीं और फलने-फूलने का मौका दिया। आज सौरभ की कंपनी 7 हजार से ज्यादा लोगों को लोन दे चुकी है, जिनमें एक भी भुगतान फेल नहीं हुआ।

नैशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के इस एंटरप्राइज सेंटर में युवाओं के बिजनेस आइडिया को विकसित करने के लिए एक्सपर्ट, इंडस्ट्री और पूंजीपतियों के प्रतिनिधि बैठे होते हैं। युवा अपना बिजनेस आइडिया लेकर निचले फ्लोर पर एक्सपर्ट के पास पहुंचते हैं। वहां आइडिया मंजूर हुआ तो ऊपर के फ्लोर पर इंडस्ट्री के प्रतिनिधि होते हैं। उन्हें भी आइडिया भा जाए तो और अगले तल पर पूंजीपतियों के प्रतिनिधि बैठे होते हैं। वहां भी बात बन जाए तो आपको पूरी मदद के साथ बिजनेस आइडिया बाजार में उतार दिया जाता है।

कुछ इसी तरह का कॉन्सेप्ट है सिंगापुर के इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्निकल एजुकेशन में। वोकेशनल कोर्स के लिए खुले इस सरकारी संस्थान का इन्फ्रास्ट्रक्चर ही हैरान करने के लिए काफी नहीं है। इस इंस्टिट्यूट में एक बड़ा हिस्सा रिटेल दुकानों को दिया गया है, जहां आम पब्लिक खरीदारी करती है। इन दुकानों में काम इंस्टिट्यूट के छात्र ही करते हैं। स्टूडेंट सैलून, बेकरी, ऑप्टिकल की असली दुकानों में ट्रेनिंग लेते हैं। उनकी यह प्रैक्टिकल ट्रेनिंग उन्हें सीधे इंडस्ट्री से जोड़ती है।

एजुकेशन के उभरते हब के तौर पर देखे जा रहे सिंगापुर के बारे में एजुकेशन कंसल्टेंट कहते हैं कि यहां इन्नोवेशन यानी कुछ नया करने को तरजीह दी जाती है। कंसल्टिंग फर्म सॉलिडियंस ने 2013 में इन्नोवेशन के मामले में सिंगापुर को पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र में टॉप बताया। इस देश के विश्वविद्यालयों को बेहतरीन संस्थानों की सूची में जगह मिली हुई है। हाल की एक स्टडी में नैशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर को एशिया की टॉप यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला। यहां एजुकेशन को इंटरनैशनल लेवल का बनाने के लिए पश्चिमी देशों के कई नामी संस्थानों के साथ गठजोड़ किया गया है। इंटरनैशनल फैकल्टी भी उपलब्ध है। अमेरिकी पूंजी बाजार को छोड़कर सिंगापुर मैनेजमेंट यूनवर्सिटी में सेंटर फॉर मार्केटिंग एक्सेलेंस के डायरेक्टर बने डॉ. श्रीनिवास के रेड्डी बताते हैं कि इस देश में पाठ्यक्रम ग्लोबल मानदंडों के मुताबिक है और रिसर्च पर काफी फोकस है।

न के बराबर प्राकृतिक संसाधनों वाले देश सिंगापुर मानव संसाधन को ही पूंजी माना जाता है। ऐसे में नॉलेज आधारित इकॉनमी के लिए शिक्षा को अहम कुंजी के तौर पर देखा जाता है। यहां अच्छे टैलंट की उपलब्धता की वजह से मल्टिनैशनल कंपनियों ने अपने केंद्र बना रखे हैं। एक अंदाजे के मुताबिक, सिंगापुर में 87 हजार इंटरनैशनल स्टूडेंट पढ़ाई कर रहे हैं, जिनमें भारतीय छात्रों की संख्या हर साल 20 प्रतिशत बढ़ रही है।

क्या खास है सिंगापुर में
सेफ्टी :
ऑस्ट्रेलिया के मुकाबले छवि बेहतर है। क्राइम की कम दर के कारण नाइट लाइफ जिंदगी आसान बनाती है।

लैंग्वेज : अंग्रेजों का शासन देख चुके सिंगापुर में अंग्रेजी बोलने-समझने वालों की तादाद अच्छी है। यहां लिटिल इंडिया भी है, जहां भारतीय मूल के लोगों की मौजूदगी, खान-पान और सामान उपलब्ध है।

खर्च : पश्चिमी देशों के मुकाबले यहां पढ़ाई का खर्च कम है। यहां सरकार शिक्षा का ढांचा बेहतर बनाने पर काफी खर्च कर रही है।

दूरी : पश्चिमी देशों के मुकाबले कमतर दूरी यहां भारतीय छात्रों को आकर्षित कर रही है। सिंगापुर की फ्लाइट महज साढ़े पांच घंटे की है।

रोजगार : विकसित अर्थव्यवस्था होने के कारण रोजगार की कमी नहीं है। वर्क परमिट मिलने में आसानी भी यहां का आकर्षण है।

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